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चरित्र वैभव
अब एक कृपा और कीजिए !"
बादशाह विस्मय और उदारता के साथ बोला" कहिए ! आप क्या चाहती हैं ।"
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"यही कि इस भृत्य का अपराध माफ कर दीजिए ।" नारी ने सहजभाव से कहा ।
हुमायूँ के मुंह से बरबस 'वाह ! वाह !' निकल पड़ा । उसने मन-ही-मन उस देवी को प्रणाम किया, फिर आभूषणों से सजाकर विदा देते हुए कहा - " तुम ने अपने धर्म की ही नहीं, किंतु हमारे धर्म की भी रक्षा की है और एक गरीब जान की भी ! "
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