________________
चरित्र वैभव
२०५
देखता रहा, और फिर आगे चला गया ।
बादशाह का दरबारी नौकर था-उस्मान । उसने बादशाह की प्रेम-मुग्ध-नजर पहचानी, और सोचा "यदि इस स्त्री को बादशाह के महलों में पहुँचा दूं तो बस, बादशाह प्रसन्न हो जायेंगे और मेरी तकदीर खुल जायेगी।" दुष्ट उस्मान ने छल-कपट करके उस कुलीन हिन्दू रमणी को एकदिन अपने चंगुल में फंसा लिया।
वह स्त्री डरी-सहमी, भय से काँपती उदास हुई उसके घर में बैठी थी। उस्मान ने उसे खुश करने के लिए कहा- "मैं तुम्हारे दिव्य सौन्दर्य का मूल्य कराना चाहता हूँ, अब तुम किसी टूटी-फूटी झोंपड़ी में नहीं, किंतु शाहशाह हुमायूं के राजमहल में आनन्द करोगी। कल तुम भारत की साम्राज्ञी बनोगी और मैं उस वक्त तुम्हारा प्रधानमंत्री रहूँगा
"एन्नालि तोर्कणम, मूटल मजान्नौरू" । मूर्ख उस्मान के दिवास्वप्नों पर कुलीन रमणी ने घृणापूर्वक थूक दिया। रात्रि के समय बादशाह महलों में अकेला टहल रहा था, तभी उस्मान आँसुओं से भीगी उस सुन्दरी को बादशाह के सामने ले आया । क्षण भर जैसे बिजली चमक गई हो, बादशाह चकित हुआ उस दैवीसौन्दर्य को देखता रहा।
बादशाह की प्रेम-पिपासु आँखें और पुलकता हुआ चेहरा देखकर उस्मान का दिल बल्लियों उछलने लगा।
Jain Education InternationaFor Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org