________________
मोहजाल
इस विराट संसार में मनुष्य का अस्तित्व सागर में एक बूंद के जितना भी है या नहीं-कौन जाने ? पर मोह एवं अहंकार के वश हुआ वह सोचता है, “संसार में मैं ही सब कुछ हूँ, मेरे समान दूसरा कोई नहीं ? मेरे जैसा कोई इतिहास में हुआ नहीं, और होगा भी नहीं !"
मोहग्रस्त प्राणी ज्ञानीजनों की इस वाणी को भूल जाता है
नत्थि केई परमाणपोग्गलमत्त वि पएसे जत्थ णं अयं जीवे न जाए व, न मए वावि ।
-भगवती सूत्र १२१७ इस विराट विश्व में एक परमाणु जितना भी ऐसा कोई क्षेत्र (प्रदेश) नहीं है, जहाँ पर तुमने (इस जीव ने) अनेकोंबार जन्म एवं मृत्यु का चक्कर नहीं लगाया हो।
१८०
Jain Education InternationaFor Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org