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अंकुश, अपने हाथ में
१७७ भरोसे कभी नहीं चलता, जिस काम को करने में स्वयं असमर्थ होता, उस काम में कभी हाथ नहीं डालता, चाहे वह कितना ही छोटा या बड़े से बड़ा काम होता।
दिल्ली पर विजय करने के बाद पराजित बादशाह मुहम्मदशाह रंगीले ने उसे हाथी पर बिठाकर दिल्ली की सैर कराने का कार्यक्रम बनाया । नादिरशाह ने भारत आने पर ही सर्वप्रथम हाथी देखा था, फिर हाथी पर बैठने का तो प्रश्न ही क्या था ! हाथी के होदे में बैठने पर उसने हाथी की गर्दन पर महावत को अंकुश लिए बैठा देखा तो कहा-"तू यहाँ क्यों बैठा है ? हाथी की लगाम मेरे हाथ में देकर तू नीचे उतर जा!" ___ महावत ने कहा- हुजूर ! हाथी के लगाम नहीं होती! इस को तो हम पीलवान ही चला सकते हैं।" ___ नादिरशाह ने चोंक कर पीलवान की ओर देखा - "जिस जानवर की लगाम मेरे हाथ में नहीं, मैं उस पर बैठ कर अपनी जिन्दगी खतरे में नहीं, डाल सकता" —यह कह कर नादिरशाह हाथी पर से कूद पड़ा। ___ क्या, जो मनुष्य अपने मन रूप हाथी को अंकुश अपने हाथ में नहीं रख सकता, और फिर भी उस पर सवार हो रहा है, वह नादिरशाह की इस उक्ति से शिक्षा नहीं लेगा?
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