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क्या गोरा, क्या काला
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भगवान महावीर ने तो यहाँ तक कह दिया
सक्खं खु दोसई तवो विसेसो
न दीसई जाइ विसेस कोइ । संसार में तप (साधना) की विशेषता ही प्रत्यक्ष दीख रही है, जाति, वर्ण एवं रंग की कोई विशेषता नहीं है।
भारतीय नीति का सूत्र है-चंडाल से भी धर्म का श्रेष्ठ तत्त्व ग्रहण कर लेना चाहिए ।अन्त्यादपि परं धर्म
-मनुस्मृति २।२३८ और इस नीति सूत्र को आगे बढ़ाते हुए आचार्य सोमदेव कहते हैं-"पुरुषाकारोपेतः पाषाणोऽपि नावमंतव्यः किं पुनर्मनुष्यः"-मनुष्य का रूप धारण किए पत्थर का भी सम्मान करना चाहिए, फिर मनुष्य-चाहे गोरा हो या काला, चंडाल हो या ब्राह्मण उसका अपमान क्यों किया जाय ? उसका सम्मान कर उसके गुण ग्रहण करना चाहिए।
बात है कुछ पुरानी, अमेरिका के स्वतंत्रता के जन्म दाता जार्ज वाशिंगटन के जीवन की।
वाशिंगटन एक बार अपने मित्रों के साथ घोड़े पर सवार हुए कहीं घूमने को निकले। रास्ते में एक हब्शी (काला आदमी) उधर से आता हुआ रुक गया। वाशिंग
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