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________________ ज्ञानी का धीरज १४५ जान नौकर ने रद्दी की टोकरी में डाल दिया । वे पसीने से तर-बतर हो रहे थे । पर कुछ क्षण बाद ही अपने आपको संभाल लिया न्यूटन ने । धैर्य टूटने नहीं दिया, पुनः प्रयोगशाला में उठकर बैठ गये और आँकड़ों का दूसरा ग्राफ बनाने में जुट गये ! यह है विवेकी मानस का धैर्य ! इतनी विकट घड़ियों में भी उसने अपने विवेक को जगाये रखा, और मानसिक संतुलन बिगड़ने नहीं दिया । प्रसिद्ध लेखक कारलाइल के जीवन में भी कुछ ऐसी ही घटना घटी। फ्रेंच राज्यक्रान्ति के सम्बन्ध में उसने एक बहुत ही महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ लिखा, अनेक दुर्लभ पत्र व आँकड़े उसमें संकलित किये थे । उसकी पांडुलिपि अपने एक मित्र के पास देखने को भेजी । मित्र की असावधानी से पांडुलिपि को नौकर ने रद्दी में बेच डाला और रद्दी वाले ने उसे जला डाली । कारलाइल इस घटना से कुछ देर हतप्रभ सा रह गया । पर चुपचाप घर लौटकर उसने अपनी स्मृति को स्थिर किया और पुनः वह ग्रन्थ लिखने में जुट पड़ा । Jain Education Internationa For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003199
Book TitlePratidhwani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1971
Total Pages228
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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