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प्रतिध्वनि
आनंदित हो उठता, कोई चिड़िया चहकती तो शिशु किलक उठता, एक छोटा-सा बकरी का बच्चा सामने आया तो शिशु उसे देखकर आनंद से ललक उठा-वृद्ध ने विद्वानों को ओर प्रश्न भरी नजर से देखा-"बतलाइए उस शिशु के आनंद का कारण क्या है ?"
यदि ज्ञान से आनंद प्राप्त होता है तो शिशु तो निरा अबोध था, उसे कुछ भी ज्ञान नहीं; उसके पास कोई सत्कर्म भी नहीं । वह गुलाब के फूल को देखकर भी आनंदित हो रहा था और नीम के पत्तों को हिलता देख कर भी ! उसकी आनंद सृष्टि का मूल क्या है ? वह पानी में सरसराती मछली को दौड़ती देखकर भी किलक उठता
और विषधर भुजंग को आते देख कर भी आनंद से मचलने लगता । आखिर उसके निर्मल आनंद का उत्स कहाँ था ?"
सभा में स्तब्धता छा गई, बालक के आनंद के मूल तक किसी की सूक्ष्मदृष्टि नहीं पहुँची।
वृद्ध ने अपनी अनुभवी वाणी में कहा- "बालक की आनन्दानुभूति का मूल स्रोत यही है कि उसकी अपनी कोई कल्पना नहीं, उसका हृदय निर्मल एवं पवित्र था, फल और कांटा, मछली और विषधर में वह कोई अन्तर नहीं देखता... उसकी अन्तर सृष्टि सर्वथा वीतराग थी, स्नेह एवं आनंद की लहरियां उसके हृदय में उठती थीं
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