________________
३६
दिल बदल !
निर्ग्रन्थ परम्परा के महान् तत्त्वज्ञानी गरधर इन्द्रभूति से एकवार श्रमरण केशीकुमार ने पूछा - 'कोई श्रमरण रंगीन वस्त्र पहनता है, कोई सफेद और कोई पहनता ही नहीं, इस विभिन्नता का क्या कारण है ? एक ही मार्ग के अनुयायी इस तरह अलग-अलग दिशाओं में क्यों चलते हैं ?'
इन्द्रभूति तत्त्वज्ञान की गहराई में डुबकी लगाते हुए बोले- न तो वस्त्र रखने से मुक्ति अटकती है, और न वस्त्र उतारने से मुक्ति मिलने की ही कोई निश्चिति है, वस्त्र तो मात्र एक आवरण है देह की लज्जा के लिए ! - लोगों को सहज परिचय देने वाला एक परिवेष हैएक चिन्ह है ।
भगवान महावीर ने इसी बात को एकबार यों प्रकट किया था
कसचीरेण न तावसो - उत्त० २५।३२
१०५
Jain Education Internationa For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org