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________________ ६६ प्रतिध्वनि जानती, मेरा पिता कौन है ? मैंने अपनी माँ से पूछा, उसने बताया कि युवावस्था में वह अनेक पुरुषों के साथ रमण करती रही है, इसलिए वह भी ठीक-ठीक नहीं बता सकती कि मेरा पिता कौन है। मेरी माँ का नाम जावाली है, और मेरा नाम सत्यकाम ! मेरी माँ ने कहा है-इसलिए मैंने सब सही-सही आपको बता दिया है, अब मुझे ब्रह्म विद्या सिखलाएं, मैं उसी की खोज में भटक रहा हूं।" ऋषि इस सरल सत्य से अभिभूत हो उठे। स्नेह गद्-गद् हो उन्होंने सत्यकाम को हृदय से लगा लिया-- "तुम सचमुच ही ब्राह्मण हो, ब्रह्म विद्या के अधिकारी हो । जिस हृदय में सत्य की इतनी सरल अभिव्यक्ति होगी, वही तो ब्रह्म विद्या पा सकेगा। उसके लिए गोत्र और कुल कभी बाधक नहीं हो सकते । सत्यवक्ता ही तो ब्रह्म विद्या का सच्चा अधिकारी होता है। सत्य और ज्ञान पाने के लिए और कुछ नहीं, बस, निर्मल निश्छल हृदय चाहिए। Jain Education InternationaFor Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003199
Book TitlePratidhwani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1971
Total Pages228
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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