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बोलते चित्र नौंका पूर्ण भरी हुई थी।
तूफान उत्तरोत्तर बढ़ता जा रहा था। नाविक ने कहा-जरा इस निरर्थक भार को कम करो, वर्ना नौका डूब जायेगी। भार कम होने पर शायद नौका किनारे लग जाए।
नाविक ने एक गठडी नदी में डालने के लिए उठाई किन्तु चीनी यात्री ने उसे रोकते हुए कहा-भाई ! इसे न डालो। भारत में फिर कर मैंने यह अनमोल सामग्री अपने देशवासियों के लिए एकत्र की है। यह साहित्यसंस्कृति की महान् धरोहर है। इसके सामने मेरे देह का कुछ भी मूल्य नहीं है। यह संस्कारी साहित्य जहाँ भी रहेगा वहाँ के देशवासियों के जीवन का नव-निर्माण करेगा।
नाविक और चीनी यात्री के वार्तालाप को नालंदा विश्व विद्यालय के विद्यार्थियों ने सुना। इस सांस्कृतिक धरोहर के लिए यदि हमारे सामने यह अतिथि अपने प्राण समर्पित करता है तो हमारे लिए अत्यन्त लज्जा की बात है । उन विद्यार्थियों ने आँख के संकेत से परस्पर बात करली।
उसी समय एक तेजस्वी विद्यार्थी खड़ा हुआ। उसने दोनों हाथ जोड़कर कहा-'भदन्त ! आपने भारत में भ्रमण कर जो बहुमूल्य सामग्री एकत्र की है, वह भार के कारण नष्ट हो जाय, यह हमारे लिए लज्जा की बात
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