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बोलते चित्र महानाम-राजन् ! मैं यही बात तुम्हें स्मरण कराने के लिए आया था। विद्याभ्यास की पूर्णाहुति पर तुमने मुझे गुरुदक्षिणा के लिए कहा था। उस समय मैंने कहा था-तुम अभी अपने पास ही रखो, जब मुझे गुरुदक्षिणा की आवश्यकता होगी, माँग लूंगा।। . राजा--मैं समझ गया । आप न माँगे तो भी मैं देने के लिए प्रस्तुत हूं। आप निरिंचत रहें। राजा ने उसी समय सेनापति को बुलाकर आदेश दिया-लूटने वाले सैनिक कहीं महानाम के घर पर न पहुँच जाएँ, यह ध्यान रखना। ये गुरुदक्षिणा माँगने आये हैं अतः इनकी रक्षा करना मेरा परम पवित्र कर्तव्य है। कपिलवस्तु पर मेरा पुराना वैर है, उसका बदला अवश्य लिया जाय पर महानाम का घर पूर्ण रूप से सुरक्षित रहे।
महानाम ने बीच में ही बात काटते हुए कहाराजन् ! मैं ऐसा स्वार्थी नहीं हूँ। मैं अपने घर के लिए नहीं, नगर निवासियों के लिए अभय चाहता हूँ।
गुरुदेव ! आप मिथ्या आग्रह न करें। जिस अपमान की आग में मैं वर्षों से झुलस रहा हूँ वह आग नगरनिवासियों को झुलसा कर ही शान्त होगी–विडुभ ने अपनी बात का स्पष्टीकरण करते हुए कहा
महानाम-मैं यह हत्याकांड देख नहीं सकता। मेरे खातिर ही यह बंद कर दो।
राजा--गुरुदेव ! मुझे स्मरण है कि आप जलक्रीड़ा
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