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तृष्णा
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उस वृद्ध ने कहा-इसमें छप्पन करोड़ के रत्न हैं।
दूसरा बैल उसी तरह का था, पर उसमें रत्न अपूर्ण जड़े हुए थे।
राजा सोचने लगा-मेरे खजाने में भी ऐसे बहुमूल्य रत्न नहीं हैं । ऐसे रत्नों का स्वामी होकर भी चन्दन की लकड़ियाँ चुनने के लिए यह आधी रात में श्रम करता है।
उसी समय श्रेणिक को भगवान् महावीर के मंगलमय वचन स्मरण हो आये कि तृष्णा आकाश के समान अनन्त है । उसकी पूर्ति कभी सम्भव नहीं है ।
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