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तृष्णा
रात्रि का समय था । चारों ओर गहरा अंधकार छाया हुआ था । आकाश में उमड़ घुमड़ कर घनघोर घटाएं आ रही थीं और गंभीर गर्जना कर हजार-हजार धारा के रूप में बरस रही थीं । सन्- सन् करता हुआ तेज पवन चल रहा था । राजगृह की सड़कें और गलियां पानी से भर गई थीं ।
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महाराजा श्रेणिक और महारानी चेलना राजप्रासाद के गवाक्ष में बैठे हुए वर्षा को देख रहे थे। बिजली चमकी, उसके निर्मल प्रकाश में महारानी चेलना ने देखा - कुछ ही दूरी पर एक वृद्ध पानी में खड़ा थर्थर् काँप रहा है और पानी में से लकड़ियाँ खींच रहा है। रानी के आश्चर्य का पार न रहा । ऐसे समय में यह व्यक्ति क्या कर रहा है ।
महारानी ने आक्षेप की भाषा में कहा- राजन् ! देख लिया आपका कल्याणकारी राज्य । एक ओर गगनचुम्बी अट्टालिकाओं में विराट् वैभव अठखेलियां कर रहा है,
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