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लाभ होता ही रहता है । हमें हानि होने पर घबराना नहीं चाहिए और लाभ होने पर खुशी से नाचना नहीं चाहिए। हमें तो चाहे लाभ हो चाहे हानि समभाव में रहना चाहिए ।
युवक देख रहा था । आज उसे अनुभव हुआ कि योगी ने किस लिए इनके पास भेजा था । दस लाख का लाभ होने पर भी सेठ के मन में प्रसन्नता नहीं और दस लाख का नुकसान होने पर भी मन में संक्लेश नहीं । यह अनुकूल व प्रतिकूल दोनों ही स्थितियों में समभाव में रहता है । समभाव या समत्व ही तो योग है । आज शान्ति का गुर उसे मिल गया। यही तो शान्ति का सही मार्ग है ।
शान्ति के लिए भटकने को आवश्यकता नहीं, वह न तो परिजन में है न स्वजन में है और न असन वसन व भवन में ही है । जितना मन समभाव में रहेगा उतनी ही शान्ति प्राप्त होगी ।
शान्ति का मूल मन्त्र
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