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________________ ८८ फूल और पराग सारी बात अनिल को बताई। अनिल ने गम्भीर होकर कहा---'मधु ! तेने भयंकर भूल की है । राजा जानेगा तो सारे परिवार को सूली पर चढ़ा देगा । राजा का यह इकलौता ही पुत्र था। अनिल की आँखें भी डबडबा गई। कितना अच्छा था वह।" मधु-"नाथ ! अब आँखों से आँसू बहाने से काम न चलेगा। अपनी बुद्धि का चमत्कार दिखाना होगा।" अनिल एक क्षण सोचता रहा, दूसरे ही क्षण उसके चेहरे पर अनोखी चमक आ गई। उसने कहा-"हाँ आज मैं तुम्हें अपनी बुद्धि का प्रभाव दिखाऊंगा। उसने चट से राजकुमार की लाश उठाई, और उसे लेकर घर से बाहर निकल गया। गलियों में अन्धकार था। वह उसे लेकर नगर की मशहूर वैश्या के वहाँ पर पहुँचा । द्वार के सहारे उसे खड़ा कर उसने वैश्या को आवाज दी कि- 'मैं राजकुमार प्रदीप आया हूं जरा द्वार खोलो।" वैश्या ने राजकुमार का नाम सुना तो प्रसन्नता से वह नाच उठी, मेरे धन्य भाग्य हैं कि आज प्रथम बार मेरे यहाँ राजकुमार आये हैं। वह अपने मकान से नीचे उतरी तब तक अनिल तो वहां से नौ दो ग्यारह हो चुका था। वैश्या ने ज्यों ही द्वार खोला त्योंही द्वार के सहारे खड़ी राजकुमार को लाश नीचे गिर पड़ी। राजकुमार को नीचे गिरा देखकर वैश्या के तो होस हवास ही उड़ गये। राजकुमार को मरा हुआ देखकर वह भी बेहोश Jain Education InternationaFor Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003196
Book TitleFool aur Parag
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1970
Total Pages134
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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