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फूल की तरह विकसित हैं तो कुछ पराग की तरह महक रही है अतः इस संकलन का नाम मैंने फल और पराग पसन्द किया है।
श्रद्धय सदगुरुवर्य श्री पुष्कर मुनि जी महाराज के मंगलमय आशीर्वाद से मैं साहित्यिक क्षेत्र में प्रगति कर रहा हूँ अतः उनके असीम उपकार को मैं विस्मृत नहीं हो सकता। साथ ही श्राचन्द जी सुराना 'सरस' को भी भुलाया नहीं जा सकता जिन्होंने पुस्तक को मुद्रण कला की दृष्टि से सर्वथा सुन्दर बनाया है, संशोधन आदि कर मेरे भार को हलका किया है। श्री स्थानकवासी जैन उपाश्रय १२ ज्ञान मन्दिर रोड दादर-बम्बई २८ १५-अगस्त १९७०
-देवेन्द्र मुनि
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