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अमर फल
वहां की प्रसिद्ध गणिका थी। वह रानी से भी अधिक महत्व उसे देता था। उसने अमर फल गणिका को देने का निश्चय किया। वह उस फल को लेकर गणिका के यहाँ गया और मनोविनोद करते हुए उसने अमर फल गणिका को उपहृत किया। दैविक फल को पाकर गणिका की प्रसन्नता का पार न रहा । ___ अमर फल को पाकर गणिका चिन्तन करने लगी कि मेरा जीवन कितना अधम है मेरे कारण कितनों का पतन हुआ है। यदि मैं अमर बन गई तो हजारों व्यक्ति वासना के कर्दम में गिरकर अपने जीवन को बर्बाद करेंगे ! इसलिए यही श्रेयस्कर है महान् परोपकारी सम्राट भर्तहरि को यह फल भेंटकर दू जिससे वे दीर्घकाल तक वह प्रजा का प्रेम से पालन करते रहें।
गणिका दूसरे दिन राज सभा मैं फल को लेकर उपस्थित हुई। उसने ससम्मान वह अमर फल राजा को भेंट किया । राजा ने फल को देखते ही पहचान लिया। परन्तु मन में प्रश्न कौंध गया कि पिंगला रानी को दिया गया यह फल गणिका के पास कैसे पहुँच गया। भर्तृहरि ने अनजान बनकर गणिका से पूछा--- यह देवनामी श्रेष्ठ फल तुम्हारे पास किस प्रकार आया ।
गणिका ने सहज भाव से कह दिया आपका जो हस्तिपालक है वह मेरा प्रेमी है, उसने यह अमूल्य उपहार मुझे दिया है। राजा ने पुरस्कार देकर गणिका को विदा किया।
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