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________________ ५२ अमिट रेखाएं वसिट्ठक-पुत्र ! मैं अपनी इच्छा से नहीं, पर तुम्हारी माँ के कहने से यह कार्य करने जा रहा हूँ। पुत्र-पिताजी ! गलत बात तो मां की भी नहीं माननी चाहिए । अब भी आपको इस घोर पाप से बचना है।" पुत्र की बात को सुनकर वसिट्ठक में गिरते-गिरते सम्भल गया। वह पिता और पुत्र को गाड़ी बिठाकर पुनः घर की ओर चल पड़ा । वसिट्ठक की पत्नी उस दिन बहुत ही प्रसन्न थी कि आज घर का पाप टल गया। बढिया भोजन बनाकर वह बैठी ही थी कि बुढे को पुनः गाड़ी में आया हुआ देखकर क्रोध से तिलमिला पड़ी। अरे ! तुम तो पुनः इस जिन्दा लाश को घर में ले आये । वसिट्ठक ने कहा-तुम पापिन हो, मैं तुम्हारी एक भी बात नहीं मानूंगा, तुम्हें घर में रहना है तो अच्छी तरह से रहो, वर्ना घर से बाहर निकल जाओ। इतना सुनते, ही वह घर से निकल गई और पास के दूसरे मकान में चली गई। उसे आशा थी कि वसिट्ठक उसे मनाने आयेगा, पर आशा निराशा में परिणत हो गई। दिन पर दिन बीतते गये किन्तु वसिट्ठक नहीं आया । एक दिन पुत्र ने सोचा, मां को बहुत शिक्षा मिल चुकी है ! पिताजी से क्षमा मांग कर घर पर आ जाय तो अच्छा है। उसने उपाय निकाल लिया। उसने पिता से कहा, आप सुबह जोर से कहिएगा कि मैं दूसरा विवाह करने जा रहा हूं, गाड़ी में बैठकर रवाना हो जाइएगा, और शाम को पुनः लौट आइएगा। वसिट्ठक ने पुत्र की Jain Education InternationaFor Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003195
Book TitleAmit Rekhaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1973
Total Pages140
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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