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अमिट रेखाएं गंगा-मैया ने मुझे यह समर्पित किया है। पिता ने कहातू महान सौभाग्यशाली है जिससे गंगा तेरे पर प्रसन्न है। यह करोड़ों की कीमत का कंगन कोई भी देखेगा तो यही समझेगा कि चुरा कर लाया है । श्रेयस्कर तो यही है कि इसे राजा को भेंट कर दो. जिससे उसकी कृपा हमारे परिवार पर रहेगी। और हम सदा के लिए सुखी बन जायेंगे।
पण्डित को पिता का सुझाव अच्छा लगा। वह कंगन को लेकर राज-सभा में पहुँचा । राजा को कंगन समर्पित करते हुए गंगा का प्रसंग सुनाया तो राजा के आश्चर्य का पार न रहा। राजा ने कंगन रख लिया और एक लाख रुपए उसे पुरस्कार में दे दिये ।
राजा ने वह कंगन अपनी रानी को भेंट किया। रानी ने कंगन को पहना, सभी ने उसको सराहना की। इतने में एक दासी ने कहा--रानी साहिबा ! एक हाथ तो सुन्दर लगता है पर दूसरा हाथ सूना-सूना लग रहा है। क्या दूसरा ऐसा कंगन नहीं है क्या ?
दासी की बात रानी के दिल में चुभ गई। उसने तत्काल राजा को बुलाकर कहा। राजा ने पण्डित को बुलाकर दूसरा कंगन लाने का आदेश दिया। पण्डित के तो होश ही गायब हो गए। वे हक्के-बक्के होकर जमीन की ओर देखने लगे। क्या उत्तर दूं समझ में नहीं आ रहा था। तभी राजा ने लाल आंखें कर कहा कि शीघ्र ही आदेश का पालन होना चाहिए । पण्डित ने धीरे से
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