________________
२४
अमिट रेखाएं छाया में विश्राम लीजिए। पहले जो अन्य कार्य आया हुआ है उसे सम्पन्न कर आपकी सेवा करूंगा।
पण्डितजी विश्रान्ति के लिए वृक्ष की शीतल छाया में बैठ गये। अपने पाण्डित्य का प्रदर्शन करने के लिए उन्होंने गंगा के महत्त्व पर लम्बा चौड़ा भाषण दिया और कहा-कि तुम्हें भी गंगा-स्नान कर पवित्र होना चाहिए।
रैदास ने कहा- पण्डितजी ! मैं असमर्थ हैं, मैं गंगा स्नान के लिए चलूंगा तो पीछे मेरा परिवार भूखा मर जायेगा। मैं प्रामाणिकता के साथ अपने दायित्व को निभाता हुआ जो भी समय मिलता है प्रभु स्मरण कर लेता हूँ।
पण्डितजी का अहं सातवें आसमान को छूने लगा। उन्होंने घृणा से मुंह फेरते हुए कहा- तुम्हारा जैसा अधम कभी भी गंगा-स्नान का पुण्य नहीं कमा सकता।
पण्डित के मिथ्या अहंकार को नष्ट करने के लिए भक्त रैदास ने कहा- पण्डित प्रवर ! मैंने आपके जूते ठीक किये हैं, मैं उसका पारिश्रमिक आपसे नहीं लूगा। एक मेरा छोटा-सा कार्य कर देंगे तो आपका अहसान जीवन भर नहीं भूलूंगा।
पण्डित ने उत्सुकता से पूछा-बताओ क्या बात है ?
रैदास ने अपनी जेब में से सुपारी निकाली और पण्डित को देते हुए कहा-आप तो गंगा-स्नान का महान् पुण्य कमायेंगे, पर मैं वह नहीं कमा सकता। मेरी भी गंगा के प्रति गहरी निष्ठा है। मेरी ओर से यह सुपारी
Jain Education InternationaFor Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org