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________________ महान्यज्ञ था, किन्तु आपके द्वारा अपार सम्पत्ति दान में दी गई, पर वह उसके बराबर नहीं हो सकती । ___ याचक ब्राह्मणों ने उस नेवले से कहा-तुम कौन हो, और यहां पर किस प्रकार आ गए और क्यों इस अश्वमेध यज्ञ की बुराई कर रहे हो ? यह वेद-विधि से किया गया है । जो भी इस यज्ञ में आये हैं, उनका उचित सत्कार किया गया है, दान दिया गया है। सभी उससे सन्तुष्ट हैं। यह सुनते ही नेवला कहकहा लगाकर हँसने लगा, उसने कहा-मेरा किसी से कुछ भी विरोध नहीं है । तथापि मैं जो कुछ कह रहा हूँ वह पूर्ण सत्य है । महाभारत युद्ध के पूर्व यहाँ एक ब्राह्मण परिवार रहता था, जो खेत में बिखरे हुए अनाज के दानों को चुन-चुन कर इकट्ठा करके अपनी आजीविका चलाता था। उन्होंने यह प्रतिज्ञा ग्रहण कर रखी थी, जो कुछ भी अनाज इकट्ठा हो, उसको बराबर बाँटकर तृतीय प्रहर के प्रारम्भ होने से कुछ समय के पूर्व ही खा लिया करें। किसी दिन नियत समय के पूर्व अनाज प्राप्त नहीं होता तो वे उपवास कर लिया करते थे और अनाज मिलने पर नियत समय पर खा लेते थे। एक समय भयंकर अकाल पड़ा । अन्न पानी के अभाव में लोग छटपटाने लगे। जब अन्न ही पैदा न हुआ तो, फसल काटने का प्रश्न ही न था और जब फसल न कटती तो अन्न के दाने खेतों में किस प्रकार बिखरते; अतः उस ब्राह्मण परिवार को अनेक दिनों तक भूखा रहना पड़ा। Jain Education InternationaFor Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003195
Book TitleAmit Rekhaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1973
Total Pages140
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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