________________
२
आचार्य स्थूलभद्र
भगवान महावीर के निर्वाण के लगभग एक सौ आठ वर्ष के पश्चात् बारह वर्ष का भयंकर दुष्काल गिरने से श्रमण संघ छिन्न-भिन्न हो गया । अनेक बहुश्रुत श्रमण प्राक आहार- पानी के अभाव में अनशन कर स्वर्गस्थ हुए। संघ की स्थिति दयनीय हो गई । आचार्य भद्रबाहु कुछ अपने शिष्यों को लेकर महाप्राण ध्यान की साधना करने के लिए नेपाल पहुंच गए। कितने ही श्रमण दक्षिणांचल में समुद्र के समीपवर्ती प्रदेश में चले गए। भूखे पेट आगमों का पुनरावर्तन न होने से वे विस्मृत होने लगे ।
दुर्भिक्ष मिटने पर संघ पटना में एकत्र हुआ, उन्होंने ग्यारह अंग संकलित किये । पर दृष्टिवाद के ज्ञाता आचार्य भद्रबाहु नहीं पधारे थे । उनके अतिरिक्त उसे कोई भी श्रमण जानता नहीं था; अतः संघ ने दो साधुओं को आचार्य भद्रबाहु के उपपात में भेजकर निवेदन करवाया कि वे अतिशीघ्र ही पाटलिपुत्र आकर संघ को दृष्टिवाद की वाचना प्रदान करें ।
Jain Education InternationaFor Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org