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________________ ११२ अमिट रेखाएं कर्णकुहरों में गूंज रही है, बचाओ, बचाओ।......" न मैंने तबसे भोजन किया, इसी विचार में सोया, किन्तु नींद नही आई, वजीर भी इसी चिन्ता में रातभर तड़पते रहे, किन्तु समस्या का समाधान नहीं कर सके। मैंने विचारा प्रातःकाल जाकर ही आचार्य देव से पूछूगा कि बचाने का कोई उपाय है। आचार्य श्री ने कहा-मन्त्रीवर ! चिन्ता की विशेष बात नहीं, यह तो मैं आगम प्रमाणों से निश्चित रूप से कह सकता हूँ कि उस अबला का तनिक मात्र भी अपराध नहीं है। अब उसे बचाने का एक उपाय है यदि तुम कर सकते हो तो वह उपाय यह है कि जब तक वह बालक उत्पन्न न हो जाय तब तक उसे मारा न जाय । दीवान ने कहाइसका क्या मतलब है गुरुदेव, क्या बाद में मारना। आचार्य श्री ने कहा-नहीं ! इसमें एक कारण है, यदि वह बाला अपने कर्तव्य मार्ग से फिसल गई होगी तो उस बच्चे के रोम होगा, हड्डियां होगी, यदि उसने अपराध नहीं किया है, तो वह नव जात बालक हड्डियां और रोमरहित होगा, वह अड़तालीस (४८) मिनट में पानी के बुदबुदे की तरह नष्ट हो जायेगा । दीवान ने नमस्कार किया, और खुश होता हुआ वह वजीर के पास गया, उसने आचार्य श्री की बात वजीर के सामने रखी, वजीर को यह बात बहुत पसंद आई। खिसिंह के साथ ही वजीर बादशाह सलामत के पास पहुँचे। Jain Education InternationaFor Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003195
Book TitleAmit Rekhaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1973
Total Pages140
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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