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अमिट रेखाएं
क्या आचार्य श्री का आध्यात्मिक विकास इतना बढ़ा चढ़ा है जिससे मन की बात जान लेते हैं।
दीवान ने दीनस्वर से पूछा-भगवन् ! क्या कोई उपाय है, क्या उस अविवाहिता कन्या के प्राण बच सकते हैं, बादशाह ने इस कार्य की जांच करने के लिये वजीर को नियुक्त किया, वजीर का और मेरा घनिष्ट प्रेम है । बाला को देखने के लिए उसने मुझसे आग्रह किया कि क्या तुम भी चलोगे । मैंने सहर्ष अनुमति दे दी। गये, कमरा बन्द था ? अन्दर से करुण क्रन्दन स्पष्ट सुनाई दे रहा था। वह अबला बाला छाती मत्था पीट रही थी, हाय किस्मत ! में राजकुल में जन्मी, अपना अनमोल रत्न किसी के हाथ नहीं बेचा, समझ में नहीं आता, किस कर्म के उदय से मुझे गर्भ रह गया, वह अपने दुर्भाग्य को कोसती हुई रो रही थी, उसे हमारे पैरों की खनखनाहट सुनाई दी, वह उठी और तेजी के साथ बढ़ी, द्वार की ओर देखने के लिए कि कौन खड़ा है बाहर, द्वार खोला, वजीर को और मुझे देखते ही धड़ाम से गिर पड़ी, पत्थर से सिर टकरा गया, मस्तिष्क से खून बहने लगा। पृथ्वी रक्त रंजित हो गई।
उस अबला के सिर पर वजीर ने हाथ फेरा, बेटी? घबराओ मत, हवा की, उसके मुंह में पानी दिया, घाव पर पट्टी बांधी, मूर्छा दूर हुई, कुछ चेतना आई, आंखें खोली फिर मीचलीं और कुछ समय बाद बोली-वजीर जी आपके साथ ये कौन हैं। इस दुनियां में मेरा तो कोई
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