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________________ १०५ पावन व्रत क्या आशय है तुम्हारा ?-- सतीजी ने पूछा मैं कृष्ण पक्ष में पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन करूंगी - शान्त किन्तु सबल वाणी में उत्तर मिला । सतीजी की मुद्रा से प्रकट हो रहा था कि वे उसके उत्तर को सुनकर प्रसन्न है । उन्होंने कुछ रुक कर कहातुम्हारे विचार श्रेष्ठ है, किन्तु प्रतिज्ञा पर दृढ़ रहना यह आर्य बाला कभी विचलित न होगी - उसने दृढ़ता से कहा । ! + + सुहाग की प्रथम रात थी । दीपक के प्रकाश से प्रकोष्ठ जगमगा रहा था । रत्न जटित उच्च आसन पर बैठी हुई सुन्दरी द्वार की और अपलक दृष्टि से देख रही थी कि नई उमंगे, नई तरंगे लेकर धीरे से युवक ने प्रवेश किया । सुन्दरी ने उठकर स्वागत किया और अभ्यर्थना करती हुई बोली - आर्यपुत्र ! यह कृष्ण पक्ष है न ! इस कृष्ण पक्ष में आत्मा क्यों कृष्ण बनाई जाय, यही सोचकर मैंने सद्गुरुणी जी के समक्ष पूर्ण ब्रह्मचर्य पालन का संकल्प किया है और वह भी जीवन भर के लिए । सुन्दरी की बात सुनते ही युवक चौंका । उसका चेहरा मुरझा गया, वह चिन्ता के महासागर में डुबकी लगाने लगा । स्वाभाविक मुस्कान बिखेरती हुई सुन्दरी ने कहाप्रियतम ! आप चिन्ता न कीजिये। यदि आप वासना पर विजय प्राप्त नहीं कर सकते हैं, विकारों को नहीं जीत Jain Education Internationa For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003195
Book TitleAmit Rekhaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1973
Total Pages140
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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