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गागर में सागर
मरा व्यापार चमक उठेगा ? क्या यही आपका तात्पर्य है ?
मालवीय जी ने कहा-आज नहीं, इसका रहस्य तुम्हें एक-दो दिन के पश्चात् ज्ञात होगा। मालवीय जी की बात को टालना सेठ के लिए असंभव था। उसने अपना दिल कठोर कर पांच लाख का चेक काशी विश्वविद्यालय को भेज दिया।
दूसरे दिन सभी समाचार-पत्रों में बड़े-बड़े अक्षरों में पांच लाख के दान की सूचनाएँ छपी। जब लोगों ने यह सूचना पढ़ी तो लोग सोचने लगे कि जो सेठ इस प्रकार सहजरूप से पाँच लाख का दान कर सकता है, उसका व्यापार डावाँडोल होने का प्रश्न हो नहीं। दीवाला निकालने की और घाटा होने की बात तो पूर्ण मिथ्या है। बाजार में श्रेष्ठी की अच्छी धाक जम गई। करोड़ों रुपये ब्याज से उसको आसानी से मिल गये और अपनी विलक्षण प्रतिभा से सेठ ने 'घाटा तो पूरा किया ही साथ ही इतना कमा लिया कि सारा कर्ज पुन: लौटा दिया। उस समय उसको मालूम हुआ कि महामना मदन मोहन मालवीय का उपाय कितना अनूठा और सुन्दर था।
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