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________________ वस्तु एक : नाम अनेक १२५ दूसरे के रोष के कारण परस्पर संघर्ष की स्थिति उत्पन्न हो गई। उसी समय वहाँ पर एक फल बेचने वाला व्यक्ति आ निकला। जिसके पास बहुत ही बढ़िया किस्म के अंगूर थे। अंगूर देखकर चारों के चेहरे खिल उठे। चारों ने अंगूर खरीदे और खाकर तृप्ति का अनुभव किया। वस्तु एक थी, शब्द पृथक्-पृथक् थे। एक ही वस्तु को पृथक्-पृथक् भाषा में पृथक्-पृथक् रूप से पुकारते हैं। अंगूर को हो अंग्रेजी में "ग्रेप्स" और संस्कृत में "द्राक्षा" कहते हैं। यही स्थिति धर्म के सम्बन्ध में भी है। धर्मों का लक्ष्य है आत्मा से परमात्मा बनाने का। पर लोग शब्दों में उलझ जाते हैं और परस्पर एक-दूसरे धर्म पर छींटाकशी करते हैं । Jain Education InteFoatponate & Personal Usev@ņainelibrary.org
SR No.003194
Book TitleGagar me Sagar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1979
Total Pages180
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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