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उपदेश का प्रभाव
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यूसुफ ने उसका प्रेम से स्वागत किया। रात्रि भर उसे अपने पास रखा । प्रातः होने पर उसे बहुमूल्य वस्त्राभूषण व जीवन निर्वाह के लिए अर्थराशि देकर कहा-इस घोड़े पर बैठकर तुम अच्छी तरह से प्रस्थान कर सकते हो।
यूसुफ के अप्रत्याशित सद्व्यवहार को देखकर उस हत्यारे का हृदय पसीज गया। वह उसके चरणों में गिर पड़ा और बोला-शेख ! संभवतः आपने मुझे पहचाना नहीं है। मैं आपके पुत्र का हत्यारा है। इन्हीं अपवित्र हाथों से मैंने आपके पुत्र की हत्या की है। आप मुझे दण्ड दें। मैं दण्ड के योग्य हैं। पुरस्कार के योग्य नहीं।
यूसूफ का चिन्तन बदल चुका था। उसने शांति से कहा-अच्छा, तुम्हीं मेरे पुत्र के हत्यारे हो? तो और भी अधिक धन ले जाओ जिससे तुम पुनः मेरे सामने न आओ क्योंकि तुमको देखकर मुझे अपने पुत्र की स्मृति आ सकती है और मेरे मन में सम्भव है कभी रोष भी आ जाय।
यूसुफ सोचने लगा-कुदरत ने मेरी परीक्षा लेने के लिए ही इसे मेरे सामने भेजा है। अतः उसने उसे जीवनदान देकर वहाँ से विदा किया।
यह था मुहम्मद के उपदेशों के असर जिससे एक खंखार आदमी प्रशान्त बन गया।
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