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चातुर्य
महाराजा कुमारपाल की राजसभा में बड़े-बड़े विद्वान थे। आचार्य हेमचन्द्र भी उनकी राजसभा में पहुँचे। उनके हाथ में ऊँचा डण्डा था और वे कम्बल धारण किये हुए थे। किसी विद्वान ने उनका उपहास करते हुए कहा
आगतो हेमगोपालो दण्डकम्बलमुद्वहन् ।
(डण्डा और कम्बल लेकर ग्वाला हेम आ रहा है) आचार्य ने क्रोध न कर, मुस्कराते हुए कहा
षड्दर्शन पशु प्रायश्चिारयन् जैनवाटिके ।
(जैन दर्शन के अनेकान्तोद्यान में षड्दर्शन पशुओं का चराता हुआ)
यह सुनकर विरोधी का सिर लज्जा से झुक गया। क्योंकि उसने उन्हें गोपाल बनाया तो आचार्य ने उसे पशु बना दिया। उसके पश्चात् उसने कभी भी किसी का उपहास नहीं किया।
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