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आत्मा का यथार्थ स्वरूप
परमात्मा बनने के लिए आत्मा का यथार्थ स्वरूप जानना अनिवार्य 'अप्पा सो परमप्पा' इस सिद्धान्त को क्रियान्वित करने के लिए जिस प्रकार आत्मा के स्वतंत्र अस्तित्व का दृढ़ निश्चय होना अनिवार्य है, उसी प्रकार आत्मा के यथार्थ स्वरूप का बोध होना भी अतीव आवश्यक है । आत्मा के अस्तित्व को जान लेने तथा निश्चय हो जाने पर भी वह आत्मा तब तक परमात्मा बनने के लिए उत्साहित नहीं होता, न ही परमात्मा बनने हेतु पुरुषार्थ के लिए उद्यत होता है और न परमात्मा बनने की दिशा में आगे बढ़ने का वह विचार हो करता है; जब तक वह आत्मा के यथार्थ स्वरूप को नहीं जान लेता । आत्मा परमात्मा बनने की तभी साधना करेगा, जब उसे यह बोध हो जायेगा कि आत्मा का मूल स्वरूप परमात्मा के समान है । आत्मा का अस्तित्व जान लेने पर भी जब तक यह बोध नहीं हो जाता कि जो परमात्मा बन सकती है, वह आत्मा क्या है ? कैसी है ? किस गुण धर्म वाली है ? उसका वास्तविक लक्षण और स्वरूप क्या है ?
कई व्यक्ति तो आत्मा के स्वरूप से नितान्त अनभिज्ञ रहते हैं, न ही वे आत्मा के स्वरूप को जानने के लिए उत्सुक होते हैं। एक मूर्ख राजा था । उससे किसी ने पूछा" राजन् ! आपके कितनी रानियाँ हैं ?" राजा ने कहा
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