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________________ ३१० | अप्पा सो परमप्पा प्राप्ति का शुद्ध पथ है। ऐसे परमात्मतत्व का आलम्बन लेने से व्यक्ति स्वयं को निर्भय, निश्चिन्त और सुरक्षित अनुभव करता है। उसे यह निश्चिन्तता रहती है कि मेरे साथ परमात्मा (शुद्ध आत्मा) है । व्यवहार-दृष्टि से आलम्बन की मीमांसा शुद्ध आत्मा को बाह्य आलम्बन की आवश्यकता क्यों ? ___ यद्यपि निश्च य दृष्टि से आत्मा मूल में अनन्त शक्तिमान है, सच्चिदानन्दस्वरूप है । उसे किसी भी बाह्य (पर के) आलम्बन की आवश्यकता नहीं होती। वह अपना आलम्बन स्वयं ही है। परमात्मतत्व का आलम्बन भी स्वयं के शुद्ध आत्मतत्व का आलम्बन है । फिर वह सर्वतन्त्र-स्वतन्त्र आत्मा व्यवहारदृष्टि से क्यों किसी बाह्य (पर) पर-पदार्थ का आलम्बन लेकर परतन्त्रता मोल ले ? जब वह किसी पर-पदार्थ का आलम्बन लेगा, तो उसके मन-मस्तिष्क में उस आलम्बन के साथ ही सम्भावित इष्ट-संयोग, अनिष्ट-वियोग, इष्ट-वियोग तथा अनिष्ट-संयोग के समय राग-द्वेष, मोहद्रोह, आसक्ति-वृणा, रति-अरति आदि भावकों के प्रादुर्भाव एवं बंध के खतरों का सामना भी करना पड़ेगा। ये और इस प्रकार के अन्य विषम भाव पैदा करने वाले खतरों के समय साधक समभाव नहीं रखेगा, अन्धाधुन्ध प्रवृत्ति करेगा तो उक्त आलम्बन के लेने से आध्यात्मिक विकास की दिशा में, अन्तिम लक्ष्य की ओर उसके कदम आगे बढ़ने के बदले लक्ष्य के विपरीत कदम पीछे की ओर बढ़ने लगेंगे। ऐसे प्रमादी, गाफिल और असावधान साधक की आध्यात्मिक प्रगति वहीं ठप्प हो जाएगी। इसीलिए परमात्मप्राप्ति या मोक्षप्राप्ति के मार्ग में व्यवहार दृष्टि से योग्य आलम्बन लेने से जैसे साधक की गति जहाँ तीव्र होने की सम्भावना है, वहाँ आलम्बन-ग्रहण में अविवेक, असावधानी होने से या आलम्बन ग्रहण के पश्चात् समभावपूर्वक गति न करने से उद्देश्य के विपरीत परिणाम आने भी सम्भव हैं। अपूर्ण तथा घातिकर्मावत आत्मा को आलम्बन अपेक्षित निष्कर्ष यह है कि उच्च भूमि कारूढ़ व्यक्ति को आत्मा से परमात्मा बनने के लिए किसी भी बाह्य आलम्बन की अपेक्षा नहीं रहतो । उसे अपने उपादान के शुद्ध होने पर पूर्वकृत पुण्य फलस्वरूप अनायास ही यथासमय Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003189
Book TitleAppa so Parmappa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1989
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size18 MB
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