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________________ २१६ | अप्पा सो परमप्पा चर्मचक्षुओं से परमात्मा नहीं दिखाई देता वस्तुतः वीतराग परमात्मा या निरंजन निराकार सिद्ध-बुद्ध-मुक्त परमात्मा इन चर्मचक्षुओं से नहीं दिखाई दे सकता। वीतराग सदेह परमात्मा का शरीर या शरीर की प्रतिकृति भले ही इन चर्मचक्षुओं से दिखाई दे, किन्तु उसमें विराजमान परमात्म तत्त्व उसी को दिखाई देगा, जो अपने परम पुरुषार्थ से आत्मा के वास्तविक शुद्धस्वरूप को जान ले और परमात्मस्वभाव के तुल्य शुद्ध आत्मस्वभाव में स्थिर हो जाये, आत्मा के निजी गुणों में रमण करके उन्हें प्रकट कर ले । परमात्मा को देखने के लिए दिव्यदृष्टि चाहिए किन्तु जो अभी अपूर्णज्ञानी है, किन्तु जो आत्मार्थी है, परमात्मपद को प्राप्त करने की जिसमें तीव्र उत्कण्ठा है, उसे अपनी आत्मा में निहित अनन्तज्ञानादि शक्ति को भूलना नहीं चाहिए। उसे सदा यह ध्यान रखना चाहिए कि आत्मा में अनन्तशक्ति (वीर्य), अनन्तज्ञान, अनन्तदर्शन और अनन्त अव्याबाध आनन्द (आत्मसुख) का भण्डार विद्यमान है, किन्तु आज वह कई प्रकार के आवरणों से आवृत है, अप्रकट है। उसे देखने के लिए भी जिस प्रकार दिव्यदृष्टि का होना आवश्यक है, उसी प्रकार परमात्मा को यानी परमात्मा के वास्तविक रूप को देखने के लिए भी उसी दिव्यदृष्टि को प्राप्त करना आवश्यक है। दिव्यदृष्टिहीन को परमात्मा नहीं दिखाई दे सकते ___ जो व्यक्ति आत्मा और परमात्मा के अस्तित्व और आगम तथा अनुमान आदि प्रमाणों के आधार पर ज्ञात परमात्मा के स्वरूप (व्यक्तित्व पर श्रद्धा और विश्वास रख कर चलना नहीं चाहते तथा दिव्य दृष्टि प्राप्त करने के लिए योग्य पुरुषार्थ भी नहीं करना चाहते, फिर भी परमात्मा को देखना चाहते हैं उन्हें परमात्मा कैसे और कहां दिखाई देगा? यह उनका हठाग्रह ही है। बहुत-सी वस्तुएँ क्षेत्र और काल से अतिदूर होने, अति समीप होने, दीवार आदि से व्यवहित होने या सामने अदृश्य व अप्रत्यक्ष होने पर भी नास्तिक से नास्तिक व्यक्ति को माननी पड़ती हैं। उनके अस्तित्व को स्वीकार किए बिना कोई चारा नहीं। इसी प्रकार आत्मापरमात्मा आदि अमूर्त तत्व प्रत्यक्ष न होते हुए भी उन्हें अनुमान, आगम आदि प्रमाणों से मानने में हिचक क्यों ? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003189
Book TitleAppa so Parmappa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1989
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size18 MB
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