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आत्मार्थी ही परमात्मार्थी
आत्मार्थी-'अप्पा सो परमप्पा' सिद्धान्त
को चरितार्थ करने वाला 'अप्पा सो परमप्पा'-आत्मा ही स्वभाव से परमात्मा है, इस सिद्धान्त को हृदयंगम करने से आत्मा स्वयमेव प्रकट रूप में परमात्मा बन सकता है। परन्तु प्रश्न यह है कि इस सिद्धान्त को कौन हृदयंगम कर पाता है ? वह कैसे हृदयंगम करता है ? वह क्या बोलता है ? कैसे चलता है ? किस प्रकार विचरण करता है ? उसका मुख्य चिन्तन किस विषय का होता है ? उसे किस प्राप्तव्य को प्राप्त करने की तमन्ना होती है ? इन सबका संक्षेप में उत्तर है कि आत्मार्थीजन ही आत्मा से परमात्मा बनने के सिद्धान्त को हृदयंगम करता है। वह आत्मार्थ की भाषा में ही बोलता, चलता और विचरण करता है। उसका मुख्य चिन्तन आत्मार्थ से परमात्मार्थ प्राप्ति का होता है। सच्चिदानन्दमय सिद्ध-बुद्ध-मुक्त परमात्मा को प्राप्त करने का उसका अन्तिम लक्ष्य होता है । जिज्ञासा, मुमुक्षा, पात्रता एवं योग्यता से लेकर परमात्मपद-प्राप्ति की तमन्ना तक की अर्हताएं आत्मार्थी में होती हैं। आत्मार्थी ही वास्तव में परमात्मार्थी है और वही एक दिन आत्मा से परमात्मा बन पाता है।
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