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________________ १०८ | अप्पा सो परमप्पा "."इस नई चेतना का परिणाम भी मेरे जीवन में प्रत्यक्ष दिखाई देने लगा।""लोगों के साथ व्यवहार करने में मैं अत्यन्त विनम्र और शांत बन गया था।" अब मेरे में बहुत परिवर्तन हो गया था। मुझे जो कुछ भी काम सौंपा जाता, मैं उसे खुशी से करता था। मुझे चाहे जितना सताया जाता, मैं उसे शान्ति से सहन कर लेता। विक्षोभ और बदला लेने की वृत्ति वाला मेरा 'अहं' लुप्त हो चुका था। मित्रों के साथ बाहर खेलने जाना मैंने बन्द कर दिया और एकान्त पसन्द करने लगा। प्रायः मैं अकेला ध्यानावस्था में बैठ जाता और आत्मा में लीन हो जाता।....."भोजन के विषय में मेरी कोई रुचि-अरुचि न रही। मेरी थाली में स्वादिष्ट-अस्वा. दिष्ट या अच्छा-बुरा जो कुछ भी परोसा जाता, मैं उसे उदासीन भाव से से निगल जाता।" "मुझे यह आत्मानुभव हुआ, उससे पहले भवभ्रमण से मुक्त होने की या मोक्ष-प्राप्ति करने की या वासनाशून्य होने की कोई तमन्ना मेरे मन में नहीं उठी थी।""ब्रह्म, संसार या ऐसे किसी (आध्यात्मिक) तत्व के विषय में मैंने कभी कुछ सुना न था।""बाद में मैंने 'रीमुगीता' और अन्यान्य धार्मिक ग्रन्थ पढ़े। तब मुझे पता लगा कि धार्मिक ग्रन्थों में जिस अवस्था का विश्लेषण और नामोल्लेख है, उसे मैं बिना किसी विशेषण या नामोल्लेख के मेरे में स्फुरणारूप से अनुभव कर रहा था ।"] ___ रमणमहर्षि के इस आत्मानुभव की एक विशेषता यह थी कि उनका अनुभव क्षणिक नहीं था। सामान्यतया ऐसी अनुभति जब प्राप्त होती है, तब साधक परमानन्द महसूस करता है। परन्तु वह आनन्द उन क्षणों तक ही सीमित होता है। उन क्षणों के पश्चात् वह पुनः सामान्य मानव के समान संसार के द्वन्द्वों में फंस जाता है। परन्तु रमणमहर्षि को तो इस अनुभव के पश्चात् आत्मा के साथ सतत् अनुसन्धान रहने लगा था। अनुभव को अभिव्यक्ति यह भी ध्यान देने योग्य है कि ऐसा अनुभव अत्यन्त सुखद होता है। उस समय वचनातीत शान्ति प्राप्त होती है। परन्तु अकेले शान्ति और आनन्द के अनुभव को स्वानुभूति का लक्षण नहीं कहा जा सकता । चित्त कुछ s Raman Maharshi and the path of self knowledge by Arthur Osborne, pp. 18-24 (Rider and Co. London) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003189
Book TitleAppa so Parmappa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1989
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size18 MB
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