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१० अप्पा सो परमप्पा
अमर, शाश्वत, अविनाशी, ज्ञानानन्दमय स्वभाव-स्वरूप को जान-पहचान लेता है।
आत्मा को जाने बिना सभी व्रत-तपादि संसारवर्द्धक
कई लोग कहते हैं कि हम विविध उपवासादि तप करते हैं, विविध धार्मिक क्रियाएँ करते हैं। सत्य, अहिंसा आदि व्रतों का पालन करत हैं, नियम, व्रत-त्याग-प्रत्याख्यान आदि करते हैं, फिर अपने आप (आत्मा) को जानने-पहचानने या परखने की क्या आवश्यकता है ? हम बहुत-से पुण्य कार्य करके मानव देह को सार्थक करते हैं, दान देते हैं, प्रभु नाम का जप करते हैं, भगवान की भक्ति-पूजा करते हैं, फिर आत्मा को न जाने तो क्या आपत्ति है ? आत्मज्ञान विहीन क्रियाएँ मुक्तिदायिनी नहीं
इस विषय पर जब हम दीर्घदृष्टि से विचार करते हैं तो एक बात स्पष्ट हो जाती है कि आत्मा को जाने पहचाने बिना कोई भी साधना जप, तप, दान, धर्मक्रियादि की जाती है, वह सब सम्यक्त्वयुक्त क्रिया नहीं है, मिथ्यात्वयुक्त है। आत्मज्ञान से रहित कोई भी क्रिया की जाएगी, वह क्रिया मोक्ष फलदायक-परमात्मभावप्राप्तिपरक नहीं होगी, वह संसारवद्धक ही होगी। पूष्य कर्म भी तो संसारवृद्धि का कारण है, कर्म क्षय कारक नहीं। इसलिए विश्व के सभी अध्यात्मज्ञानी मनीषियों ने एक स्वर से इस तथ्य को स्वीकार किया है कि आत्मा को जाने (ज्ञान) बिना व्यक्ति चाहे जितने कष्ट सह ले, तप कर ले, वह अपने भव-बन्धन का उच्छेद नहीं कर सकता अर्थात्-मुक्ति या परमात्मभाव को प्राप्त नहीं कर सकता । आद्यशंकराचार्य ने भी इसी तथ्य का समर्थन किया है
कुरुते गंगा-सागर गमनं व्रत-परिपालनमथवा दानम् । ज्ञानविहीनः सर्वमतेन, मुक्ति न भजति जन्मशतेन ।।।
चाहे तो गंगासागर आदि महान् तीर्थों की यात्रा कर लो, चाहे व्रतनियमों का पालन कर लो, चाहे दान दो, किन्तु सर्वमत-पंथों से सम्मत बात यह है कि (आत्म) ज्ञान से विहीन व्यक्ति सैकड़ों जन्मों में भी मुक्ति (परमात्मभाव) को प्राप्त नहीं कर सकता।
१. भजगोविन्दम् श्लोक १७
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