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प्रकाशकीय
__ साहित्य की सर्वमान्य परिभाषा----"हितेन सहितं साहित्यं" के अनुसार जो हित से, कल्याण व उत्थान की भावना से युक्त है, वही साहित्य है। हमारे ग्रन्थालय ने मानव मात्र के हित एवं कल्याण की भावना से दर्शन, इतिहास, चरित्र, काव्य तथा कथासाहित्य आदि विविध विधाओं में अब तक लगभग ११० से अधिक पुस्तकों का प्रकाशन किया है। सभी पुस्तकें जनता के लिए उपयोगी व लाभदायी सिद्ध हुई हैं ।
पिछले तीन वर्ष मे जन कथा साहित्य की लगभग ६० से अधिक पुस्तकें पाठकों की सेवा में हमने भेंट की। इसी के साथ कुछ पाठकों की माँग आयी कि विश्व साहित्य की ऐसी हजारों कहानियाँ, संस्मरण-घटनाएँ भी बड़ी रोचक व शिक्षाप्रद हैं, जो जैन कथा साहित्य के उद्देश्य के निकट ही नहीं, बल्कि पूरक भी हैं । ऐसी कहानियाँ भी संकलित कर प्रकाशित की जायें तो उपयोगी होंगी।
समर्थ साहित्यकार श्री देवेन्द्र मुनिजी शास्त्री ने पाठकों . व जिज्ञासुओं की इस भावना को लक्ष्य में रखकर सैकड़ों लघु कथाओं का चयन किया है। जिन्हें हम स्वतन्त्र रूप में पाठकों के लाभार्थ प्रस्तुत कर रहे हैं।
-मन्त्री
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