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१४६ पंचामृत
ऋषि ने उपमन्यु के भोजन के सभी द्वार बन्द कर दिये थे। गायों के पीछे दौड़ते रहने से तीव्र भूख सताती थी। दूसरा कोई उपाय नहीं मिला जिससे विवश होकर उसने आक के पत्ते खा लिए। उन विषैले पत्तों के कारण वह आँखों से अन्धा हो गया। उसे कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा था, अतः चलते-चलते वह एक दिन पानी रहित कुए में गिर गया।
सूर्यास्त हो गया था। किन्तु उपमन्यु अभी तक लौटा नहीं था। ऋषि सोचने लगे—मैंने उसके भोजन के सभी द्वार बन्द कर दिये। संभव है इसी से वह रुष्ट होकर कहीं भाग तो नहीं गया है ? अतः अपने अन्य शिष्यों के साथ उसी जंगल में पहुंचे जहाँ उपमन्यु गायें चराने के लिए ले जाता था। ऋषि ने आवाज लगाईवत्स उपमन्यु ! तुम कहाँ हो ? उसी समय उपमन्यु की ध्वनि सुनाई दी-~-गुरुदेव ! मैं कुए में गिरा हुआ हूँ।
ऋषि कुए के सन्निकट आये। पूछने पर उपमन्यु ने बताया-भूख से छटपटाने के कारण मैंने आक के पत्ते खाये थे जिससे मेरी नेत्र-ज्योति चली गई।
ऋषि ने कहा-वत्स उपमन्यु ! तुम अश्विनीकुमार जो देवों के वैद्य हैं, उनकी स्तुति करो जिससे तुम्हारी नेत्र-ज्योति पुनः आ जाएगी। गुरु के आदेश के अनुसार
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