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शुरु-भक्ति
महर्षि आयोद धौम्य का शिष्य उपमन्यु गुरुभक्त तथा कर्तव्यनिष्ठ था। उसके मन में गुरु के प्रति अपार निष्ठा थी। गुरु ने गौएं चराने का और उन गौओं की रखवाली का कार्य उसे दे रखा था। वह सदा गुरुसेवा में तल्लीन रहता । गुरु के आदेश से वह गांव में भिक्षा लेने के लिए जाता और जो भी भिक्षा प्राप्त होती सब लाकर गुरु के समक्ष रख देता। गुरु सारी भिक्षा अपने लिए रख लेते और शिष्य को उसमें से तनिक मात्र भी अन्न नहीं देते। उपमन्यु शांति से अपने कार्य में लगा रहता। एक दिन ऋषि ने उपमन्यु से पूछा-उपमन्यु ! मैं तुम्हें भिक्षा में से कुछ भी नहीं देता। ऐसी स्थिति में भी तुम्हारा शरीर बहुत ही हृष्ट-पुष्ट है। बताओ तुम क्या खाते हो?
उपमन्यु ने कहा-गुरुदेव ! मैं दुबारा भिक्षा मांग कर लाता हूँ।
__ ऋषि ने कहा- तुम यह ठीक नहीं करते । दुबारा गृहस्थों के यहाँ भिक्षा के लिए जाते समय तुम्हें शर्म
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