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________________ २० ज्येष्ठ की भीष्म ग्रीष्म ऋतु में एक यात्री एक गाँव से दूसरे गाँव जा रहा था । भयंकर गर्मी थी, लू चल रही थी । वह चलते-चलते थक गया । एक आम के वृक्ष की शीतल छाया में वह विश्राम लेने बैठ गया । उसने सोचा अभी बहुत ही गर्मी है, क्यों नहीं कुछ समय के लिए मैं यहाँ विश्राम कर लूँ। वह वहीं पर आराम से सो गया । थका हुआ होने से उसे गहरी निद्रा आ गई । आम के वृक्ष पर एक कोयल बैठी हुई अपने मधुर स्वर से जन-मन को मुग्ध कर रही थी । कोयल ने देखा उस यात्री के मुँह पर धूप चमक रही थी । कोयल ने सोचा - यह यात्री आनन्द से सो रहा है किन्तु धूप के कारण इसकी नींद उड़ जाएगी । मैं ऐसा कोई उपाय करू जिससे इसके मुँह पर छाया बनी रहे । कर भला होगा भला Jain Education International " वह सोचती रही कि छाया कैसे की जाय ? जहाँ से धूप आ रही थी उन टहनियों के बीच में अपने पंख फैलाकर वह बैठ गई । उसने देखा अब यात्री के मुँह For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003186
Book TitlePanchamrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1979
Total Pages170
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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