________________
साहस का पुरातार ५ अजितसिंह और दूसरे डाकू को निशाना बनाकर सनसनाती हई गोलियाँ छोड़ दीं। वे गोलियाँ डाकू अजितसिंह के सीने को चीरतो हुई पार हो गयी। दूसरा डाकू सरदार भी गिर पड़ा। डाकू दल के एक सदस्य ने महेन्द्र पर वार किया पर वह वार चूक गया। उसी समय बलवन्त ने अपने साथियों के साथ डाकू दल पर हमला कर दिया। उन वीर सैनिकों के सामने डाकू दल कब तक ठहरता ? कुछ डाकू वहीं पर ढेर हो गये, और कुछ वहां से भाग गये।
बलवन्त ने राजकुमार महेन्द्र को बन्धन से मुक्त किया। दोनों के प्रेमाश्रु छलक पड़े। राजकुमार को अत्यन्त प्रसन्नता थी कि उसे एक साहसी मित्र मिला है। वे दोनों ही महाराजा अजितसेन के सामने उपस्थित हुए। राजा ने दोनों का हार्दिक स्वागत किया और उद्घोषणा की-आज से मेरे दो पुत्र हैं। एक महेन्द्र और दूसरा बलवन्त।
राजकुमारी मंजुला दोनों वीरों का अभिनन्दन करने के लिए अक्षत और रोली लेकर उपस्थित हुई। उसने अपने भाई के विजयश्री का तिलक किया। वह बलवन्त की ओर बढ़ रही थी। राजा के संकेत से दो श्रेष्ठ मालाएँ लाई गई। राजकुमारी मंजुला ने वह
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org