________________
राजा के आश्चर्य का पार न रहा, भगवन् ! आपने यह क्या अबूझ पहेली प्रस्तुत की ?
योगी ने कहा-कल्पना करो, किसी के पास एक भव्य-भवन है वह प्रतिदिन झाडू लगाकर उसमें से कूड़ा कचरा निकाल कर बाहर फेंकता है, क्या वह व्यक्ति त्यागी कहलायेगा?
राजा ने कहा-भगवन् ! उसका क्या त्याग, कूड़ा कचरा तो बाहर फेंकने की ही चीज है ?
अच्छा तो बताइए, दूसरा एक व्यक्ति है जो मकान का कूड़ा कचरा तो नहीं फेंकता है पर घर में रही हुई बहुमूल्य हीरे-जवाहरात आदि सारी सम्पत्ति दूसरों को दे देता है उसे राजन् तुम क्या कहोगे ?
भगवन् ! निश्चय ही वह तो महान् त्यागी है।
योगी ने मुस्कान बिखेरते हुए कहा-राजन् ! इसीलिए तो मैंने तुम्हारे को महान त्यागी कहा है । तुमने परमात्मा, आत्म-चिन्तन जैसी महान वस्तुओं का त्याग किया है । मैंने तो परिवार, धन-वैभव के कूड़े कचरे को छोड़ा है । अब तुम ही बताओ कि तुम महान त्यागी हो या मैं ?
राजा के विवेक नेत्र खुल गये। वह चरणों में गिर पड़ा, भगवन् ! जो मुझे चाहिए था वह मुझे मिल गया। 8.
बिन्दु में सिन्धु
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org