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________________ मेरे बच्चों की माँ * महान् दार्शनिक सुकरात की धर्मपत्नी जेंथिप्पी का स्वभाव बड़ा क्रूर था । एक दिन उसने क्रोध में आकर सुकरात को खूब गालियाँ दीं और फिर भरा हुआ पानी का घड़ा लाकर उन पर उड़ेल दिया । आसपास के लोग यह तमाशा देखकर खिल खिलाकर हँस पड़े । सुकरात ने अत्यन्त मधुर शब्दों में कहा - "मुझे मालूम था कि जेंथिप्पी इतना गरजने के बाद अवश्य हो बरसेगी ।" सुकरात के पड़ौसी ने कहा - " आप इतनी परेशानी चुपचाप कैसे सहन कर लेते हैं ?" सुकरात ने मुस्करा कर कहा - "मुझे तो इसकी कड़वी बातें सुनने की आदत पड़ गई है उसी प्रकार, जैसे मशीन की खट-खट आवाज सुनने की आदत किसी कारीगर को हो जाती है। पर आपके घर में बतखें हैं, जो दिन-रात 'घे घे' किया करती है, क्या उनके शोर से आप तंग नहीं आ जाते ?" पडौसी ने कहा - "क्या बात करते हैं आप ? हमारी बतखें तो अण्डे दिया करती हैं ।" सुकरात ने हँसते हुए कहा - " तो मेरी जेंथिप्पी भी तो मेरे बच्चों की माँ जो है ?" Jain Education International बिन्दु में सिन्धु For Private & Personal Use Only ६७ www.jainelibrary.org
SR No.003184
Book TitleBindu me Sindhu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year
Total Pages116
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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