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सज्जनों को अपना स्वभाव नहीं छोड़ना चाहिए
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घटना सन् १९२४ को है। महर्षि रमण रात्रि में सो रहे थे । खिड़कियों के काँच तोड़ने की आवाज उनके कानों में पड़ी। वे उठे और दरवाजा खोलकर कहा-"भाई ! तुम इतना कष्ट क्यों कर रहे हो ? तुम अन्दर आओ, हम लोग सब बाहर निकल जाते हैं । ___चोरों ने आश्रमवासियों को बुरी तरह से मारा। महर्षि रमण को भी उन्होंने नहीं छोड़ा। जब एक परिचारक ने यह दृश्य देखा तो उसका खून खौल उठा, उसने डण्डा उठा कर चोरों पर प्रहार करने की तैयारी की।
महर्षि रमण ने उसे रोकते हुए कहा - "भाई, तुम यह क्या करने जा रहे हो ? ये चोर भी तो अपने ही भाई हैं। जैसे मुंह में जीभ और दाँत दोनों साथ रहते हैं वैसे ही समाज में सज्जन और दुर्जनों को साथ रहना चाहिए । यदि चोर अपने स्वभाव को नहीं छोड़ते, तो फिर हमको अपना स्वभाव क्यों छोड़ना चाहिए ?"
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बिन्दु में सिन्धु
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