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महान् श्लोक
भारत के सुप्रसिद्ध सम्राट विक्रमादित्य ने अपनी राज सभा में एक श्लोक लिखवाया.. "प्रत्यहं प्रत्यवेक्षेत, नरश्चरितमात्मनः ।
किन्नु मे पशुभिस्तुल्यं किन्नु सत्पुरुषैरिव ॥
तेरे इस बहुमूल्य जीवन का जो दिन व्यतीत हो रहा है, वह पुनः लौटकर नहीं आयेगा अतः प्रतिदिन चिन्तन कर कि आज का दिन व्यतीत हुआ है, वह पशुतुल्य हुआ है या मानव तुल्य ?
प्रतिदिन के चिन्तन से विक्रमादित्य के जीवन का नक्शा ही बदल गया । २४ बिन्दु में सिन्धु
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