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कविता का जन्म
गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर और आचार्य क्षितिमोहन सेन दोनों ट्रेन में सफर कर रहे थे। क्षितिमोहन सेन ने देखा कि रवीबाबू कविता के मूड में हैं। मेरी उपस्थिति में संभव है कि कहीं कविता लिखने में उन्हें बाधा हो, यह सोचकर वे धीरे से वहाँ से उठकर शौचालय में चले गये।
कुछ समय के पश्चात् जब वे पुनः लौटकर आये तो रवीबाबू ने पूछा- "तुम कहाँ चले गये थे ? देखो, अभीअभी इस कविता का जन्म हुआ है।" ।
क्षितिमोहन सेन ने कहा- "गुरुदेव ! कविता जन्म ले रही थी, इसलिए मैं यहाँ से उठकर चला गया था।"
रवीबाबू ने फिर पूछा- "तुम यहाँ से किसलिए चले गये ?"
क्षितिमोहन सेन का उत्तर था--"भारतीय संस्कृति की दृष्टि से किसी के जन्म लेते समय किसी पुरुष का वहाँ खड़ा होना अनुचित माना जाता है । पुरुष तो हमेशा बाहर खड़ा रहकर उसकी प्रतीक्षा करता है।"
बिन्दु में सिन्धु १७
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