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दिल के आइने में
पण्डित बनारसीदास चतुर्वेदी ने अपनी पत्रिका के लिए श्री पुरुषोत्तमदास टण्डन को एक फोटो की प्रति भेजने के लिए लिखा।
उत्तर में श्री टण्डन जी ने लिखा- "मुझे खेद है कि मैं फोटो नहीं भेज सकता, कारण कि मैं अपना फोटो रखता ही नहीं। घर में अभी तक तो सभी मेरे शरीर को देख सकते हैं, फिर मेरे फोटो की क्या आवश्यकता है ? फिर स्नेही मित्रों को मेरे फोटो की क्यों आवश्यकता होनी चाहिए। मुझे इसी बात में सन्तोष है कि मैं उनके हृदय में ऐसा बस जाऊँ कि जिससे वे कह सकें
"दिल के आइने में है तसबीरे-यार। जब जरा गरदन झुकायी देख ली॥"
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बिन्दु में सिन्धु
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