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एकाग्रता
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पण्डित टोडरमलजी जयपुर के निवासी जैन श्रावक थे। उन्होंने अनेक आध्यात्मिक ग्रन्थों की रचना की। उनकी माँ ने भोजन में नमक डालना इसलिए बन्द कर दिया कि नमक से प्यास अधिक लगती है, परन्तु टोडरमल जी को पता ही न चला कि भोजन अलोना है। जिस दिन उनका ग्रन्थ पूर्ण हुआ उस दिन जब भोजन करने बैठे तब उन्हें अनुभव हुआ कि भोजन अलोना है। इतनी उनकी ग्रन्थ लिखने में एकाग्रता थी। जब उन्होंने अपनी माँ से कहा---''क्या माँ, तुम भोजन में नमक डालना भूल गई हो ?" माँ ने उत्तर दिया-"ज्ञात होता है तुम्हारा ग्रन्थ आज पूर्ण हो गया है।” दोनों एक-दूसरे को श्रद्धा और स्नेह से निहार रहे थे।
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