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प्रकाशकीय कथा की अकथ लोकप्रियता सर्व-विदित ही है। छोटे बड़े सभी की रुचि को तृप्त करनेवाली कथाशैली में यहाँ ऐसी अद्भुत आश्चर्यकारी घटनाएँ गुम्फित हैं जिनको पढ़-सुनकर हृदय भाव-विभोर हो जाता है।
प्रस्तुत-उपन्यास-'पुण्य-पुरुष' में जैन इतिहास व पुराण की एक अद्भुत रस-कथा है। श्रीपाल-मैनासुन्दरी की कथा संपूर्ण जैन जगत में बड़ी ही श्रद्धा भावना के साथ सुनी जाती है, पढ़ी जाती है। इस कथा में कुछ ऐसा अद्भुत रस और प्रेरणा छिपी है कि पाठक-श्रोता धन्य-धन्य कह उठते हैं।
आदरणीय श्री देवेन्द्र मुनिजी महाराज ने बहुत ही परिश्रम करके इस कथा को उपन्यास शैली में ढाला है । श्री ज्ञान भारिल्ल जी ने सम्पादन किया है। आशा है कि पाठक इसे प्रेम पूर्वक अपनायेंगे।
--मन्त्री तारक गुरु जैन ग्रन्थालय
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