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सूत से भूत बँधता है | १५३
सेठ ने बताया
"हमें धन की जरूरत है। यहाँ से धन लेकर ही जायेंगे। हम यहाँ अपना व्यापार करने आये थे। तू हमारे व्यापार में बाधा डालता है, इसलिए तुझे बाँधेगे।"
भूत ने तत्काल सेठ को धन से भरे कलश बता दिये। रातोंरात वह सामान्य सेठ से धनी सेठ बन गया। चमत्कारी ढंग से उसकी काया पलट हो गई। सेठ सुख से अपना जीवन बिताने लगा।
सेठ के पड़ोसी सेठ ने अपनी कूटनीति से सेठ के स्तर के आकस्मिक परिवर्तन का पता लगा लिया। उसके मुह में भी पानी भर आया।
रो-झोंककर उसने अपने परिवार वालों को इकट्ठा किया। कोई आया और किसी ने कह दिया-हम नहीं आते । बड़ी खुशामद से सेठ ने सबसे जंगल चलने को कहा । कुछ ने स्वीकार किया। कुछ ने कह दिया-'अपना घर छोड़कर हम कहीं नहीं जायेंगे।' जैसे-तैसे सब जंगल पहुँचे। सेठ ने किसी से कहा- 'तुम मूज काटकर लाओ।' जवाव मिला-'हमें क्यों भेजते हो, उसको भेजो; हम तो दूसरा काम करेंगे।' आधा दिन सेठ को काम बाँटने में लग गया। किसी ने मन लगाकर काम नहीं किया। कुछ तो हाथ-पर-हाथ रखे बैठे रहे। वट वृक्ष पर बैठा भूत सब तमाशा देख रहा था। इस दूसरे सेठ ने नाटक का अन्तिम
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