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________________ सूत से भूत बंधता है | १५१ "अगर तुम सब अलग-अलग रहोगे तो कोई भी तुम्हें तोड़ सकता है । एक होकर रस्सी की तरह संगठित रहोगे तो साक्षात् यमराज भी तुम्हारा कुछ नहीं बिगाड़ सकता।" सेठ घर का मुखिया था। कोई भी उसकी बात का विरोध न करता । जो वह कहता सब एक स्वर से उसकी बात मानते । सबमें एकता और संगठन था। एक समय ऐसा आया कि सेठ का व्यापार चौपट हो गया। दो समय की रोटी जुटाना भी मुश्किल हो गया। बड़ा परिवार था, सबमें एकता थी, इसलिए जो भी काम सामने आता-मिल-बाँटकर सभी कर डालते और किसीन-किसी तरह दो समय की रोटी जुटा ही लेते । एक दिन सेठ ने सबसे कहा-- ___"एक दिन का खाना लेकर सभी मेरे साथ जंगल चलो । जंगल में ही मंगल करेंगे।" सभी ने एक वट वृक्ष के नीचे पड़ाव डाला। सेठ ने सभी को आदेश दिये और सभी का काम बाँट दिया । कोई मूज काटने लगा, कोई सरकण्डे अलग करने लगा, कोई मूज कूट रहा था, कोई रस्सी बट रहा था। सब अपने-अपने काम में लगे थे। सेठ घूम-घूमकर सबका निरीक्षण कर रहा था। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003182
Book TitleSona aur Sugandh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1977
Total Pages178
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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